राजस्थान के अपवाह तंत्र को तीन प्रमुख भागों में बांटा गया है: बंगाल की खाड़ी का अपवाह तंत्र, आंतरिक अपवाह तंत्र, और अरब सागर का अपवाह तंत्र। इस अध्याय में हम उन नदियों का विस्तृत अध्ययन करेंगे जो अपना जल अंततः अरब सागर में ले जाती हैं। ये नदियाँ मुख्यतः अरावली पर्वतमाला के पश्चिमी ढलानों से और दक्षिणी राजस्थान से निकलकर पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम की ओर प्रवाहित होती हैं।
अरब सागर अपवाह तंत्र का परिचय
यह राजस्थान का सबसे छोटा अपवाह तंत्र है। राज्य की लगभग 17% नदियाँ इस अपवाह तंत्र का हिस्सा हैं। इन नदियों का जल सीधे अरब सागर में या उसकी सहायक खाड़ियों (जैसे कच्छ की खाड़ी, खंभात की खाड़ी) में गिरता है।
- प्रमुख नदियाँ: इस तंत्र की प्रमुख नदियाँ लूनी, माही, साबरमती, पश्चिमी बनास और उनकी सहायक नदियाँ हैं।
- प्रवाह क्षेत्र: मुख्यतः पश्चिमी और दक्षिणी राजस्थान, जिसमें उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, सिरोही, जालोर, पाली, बाड़मेर, तथा नए जिले बालोतरा और सांचौर शामिल हैं।
लूनी नदी (लवणवती / आधी खारी आधी मीठी)
लूनी नदी पश्चिमी राजस्थान की सबसे महत्वपूर्ण नदी है। इसे ‘रेगिस्तान की गंगा’ भी कहा जाता है, हालाँकि यह नाम इंदिरा गांधी नहर के लिए भी प्रयुक्त होता है।
- उद्गम: अजमेर जिले में नाग पहाड़ (नाग पहाड़ी) से।
- कुल लंबाई: लगभग 495 किलोमीटर।
- राजस्थान में लंबाई: लगभग 330 किलोमीटर।
- प्रवाह क्षेत्र: अजमेर, नागौर, पाली, जोधपुर, बालोतरा, बाड़मेर और जालोर।
- अपवाह क्षेत्र (गोडवाड़ प्रदेश): यह नदी बेसिन गोडवाड़ प्रदेश कहलाता है।
- सहायक नदियाँ (उत्तर से दक्षिण):
- दाएँ किनारे से मिलने वाली एकमात्र सहायक नदी: जोजड़ी (यह नागौर में निकलती है और लूनी में मिलती है, एकमात्र जो अरावली से नहीं निकलती)।
- बाएँ किनारे से मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियाँ: मीठड़ी, लीलड़ी, सुकड़ी, बांडी, जवाई, खारी, सागी।
- संगम/अंतिम गंतव्य: गुजरात में कच्छ के रण (Rann of Kutch) में दलदली भूमि में विलीन हो जाती है। यह समुद्र तक नहीं पहुँच पाती है।
- विशेषताएँ:
- खारा पानी: इस नदी का पानी बालोतरा (बालोतरा जिला) तक मीठा रहता है, लेकिन उसके बाद खारा हो जाता है। इसका कारण है कि बालोतरा के बाद लूनी नदी का पानी लवणयुक्त चट्टानों और मिट्टियों से होकर गुजरता है, जिससे उसमें लवणता बढ़ जाती है।
- रेगिस्तानी नदी: यह रेगिस्तान में बहने वाली सबसे बड़ी नदी है।
- बाढ़: वर्षा ऋतु में बाड़मेर के तिलवाड़ा और बालोतरा में लूनी नदी में अक्सर बाढ़ आ जाती है, क्योंकि बालोतरा शहर नदी के पेटे (नदी बेसिन) से नीचे स्थित है।
- जवाई बाँध: पाली जिले में जवाई नदी (लूनी की सहायक) पर जवाई बाँध स्थित है, जिसे मारवाड़ का अमृत सरोवर कहा जाता है। यह पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा पेयजल बाँध है।
- नदी सूखना: गर्मियों में इसका प्रवाह अक्सर सूख जाता है।
3. माही नदी (वागड़ की गंगा / कांठल की गंगा / दक्षिणी राजस्थान की स्वर्ण रेखा)
माही नदी दक्षिणी राजस्थान की जीवन रेखा है और आदिवासी क्षेत्रों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- उद्गम: मध्य प्रदेश में विंध्याचल पर्वतमाला की अममोरू पहाड़ियों (धार जिला) के पास महद झील से।
- कुल लंबाई: लगभग 576 किलोमीटर।
- राजस्थान में प्रवेश: बांसवाड़ा जिले के खांदू गाँव के पास।
- राजस्थान में लंबाई: लगभग 171 किलोमीटर।
- प्रवाह क्षेत्र: बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़।
- सहायक नदियाँ: सोम, जाखम, अनास, मोरेन, चाप, एरण, हरण।
- संगम/अंतिम गंतव्य: गुजरात में खंभात की खाड़ी (Gulf of Khambhat) में गिरती है।
- विशेषताएँ:
- कर्क रेखा को दो बार काटने वाली नदी: माही एकमात्र नदी है जो कर्क रेखा (Tropic of Cancer) को दो बार काटती है – एक बार मध्य प्रदेश से राजस्थान में प्रवेश करते समय, और दूसरी बार राजस्थान से गुजरात में जाते समय।
- माही बजाज सागर बाँध: बांसवाड़ा जिले में माही नदी पर माही बजाज सागर बाँध स्थित है, जो राजस्थान का दूसरा सबसे लंबा बाँध है (लंबाई लगभग 3.1 किमी)। यह माही-बजाज सागर परियोजना का हिस्सा है, जिससे सिंचाई और विद्युत उत्पादन होता है।
- कागज की लुगदी का उद्योग: इस क्षेत्र में माही नदी के किनारे कागज की लुगदी का उद्योग विकसित हुआ है।
- त्रिवेणी संगम: डूंगरपुर जिले में बेणेश्वर धाम में सोम, माही और जाखम नदियों का त्रिवेणी संगम होता है। यह आदिवासियों (विशेषकर भीलों) का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहाँ माघ पूर्णिमा को मेला लगता है।
3.1. सोम नदी (माही की सहायक)
- उद्गम: उदयपुर जिले में ऋषभदेव के पास बीछामेड़ा की पहाड़ियों से।
- प्रवाह क्षेत्र: उदयपुर, डूंगरपुर।
- संगम: डूंगरपुर के बेणेश्वर में माही नदी में मिल जाती है।
- बाँध: इस पर उदयपुर में सोम-कागदर बाँध और डूंगरपुर में सोम-कमला-अंबा बाँध स्थित है।
3.2. जाखम नदी (माही की सहायक)
- उद्गम: प्रतापगढ़ जिले में छोटी सादड़ी के पास जाखमपुरा गाँव की पहाड़ियों से।
- प्रवाह क्षेत्र: प्रतापगढ़, उदयपुर, डूंगरपुर।
- संगम: डूंगरपुर के बेणेश्वर में माही नदी में मिल जाती है।
- बाँध: प्रतापगढ़ में इस पर जाखम बाँध स्थित है, जो राजस्थान का सबसे ऊँचा बाँध है (ऊंचाई 81 मीटर)।
4. साबरमती नदी
साबरमती नदी का उद्गम राजस्थान में होता है, लेकिन इसका अधिकांश प्रवाह गुजरात में है।
- उद्गम: उदयपुर जिले में कोटड़ा की पदरार की पहाड़ियों से।
- राजस्थान में लंबाई: लगभग 45 किलोमीटर।
- प्रवाह क्षेत्र: उदयपुर।
- सहायक नदियाँ (राजस्थान में): वाकल, हथमती, मेश्वा, मानसी, वेतरक।
- संगम/अंतिम गंतव्य: गुजरात में खंभात की खाड़ी में गिरती है।
- विशेषताएँ:
- यह राजस्थान से उद्गमित होकर गुजरात की ओर बहती है।
- गुजरात के अहमदाबाद और गांधीनगर शहर इस नदी के किनारे बसे हुए हैं।
- इसका उपयोग मुख्य रूप से गुजरात में होता है, लेकिन उदयपुर में सिंचाई के लिए कुछ नहरें निकाली गई हैं।
5. पश्चिमी बनास नदी
पश्चिमी बनास नदी का उद्गम राजस्थान में होता है और यह गुजरात में प्रवेश करती है।
- उद्गम: सिरोही जिले में नया सानवाड़ा गाँव के पास अरावली की पहाड़ियों से।
- प्रवाह क्षेत्र: सिरोही।
- सहायक नदियाँ: सुकली, कुकड़ी, धारवेल, सिपु।
- संगम/अंतिम गंतव्य: गुजरात में कच्छ की खाड़ी में गिरती है (कुछ स्रोतों के अनुसार, यह कच्छ के रण के दलदली क्षेत्र में विलीन होती है)।
- विशेषताएँ:
- इस नदी के किनारे सिरोही जिले में रेवदर नगर बसा हुआ है।
- गुजरात में डीसा शहर इसी नदी के किनारे है।
- सिरोही में इस पर सुक्ली (सुकड़ी) सिंचाई परियोजना है।
6. अन्य छोटी नदियाँ (अरब सागर अपवाह तंत्र)
- सुखड़ी नदी (लूनी की सहायक): पाली और जालोर में बहती है।
- बांडी नदी (लूनी की सहायक): पाली, जोधपुर में बहती है।
- जवाई नदी (लूनी की सहायक): पाली और जालोर में बहती है, जवाई बाँध इस पर है।
- सायला नदी (लूनी की सहायक): सांचौर में बहती है।
- सुकेत नदी (माही की सहायक): बांसवाड़ा में बहती है।
निष्कर्ष
राजस्थान का अरब सागर अपवाह तंत्र यद्यपि बंगाल की खाड़ी अपवाह तंत्र जितना विशाल नहीं है, फिर भी राज्य के दक्षिणी और पश्चिमी भागों के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। लूनी, माही, साबरमती और पश्चिमी बनास जैसी नदियाँ इन शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में जल उपलब्ध कराती हैं, कृषि को सहारा देती हैं, और आदिवासी समुदायों के जीवन का आधार हैं। इन नदियों पर निर्मित बाँध और परियोजनाएँ जल प्रबंधन और क्षेत्रीय विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, हालाँकि जल संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण इन नदियों के लिए भी बड़ी चुनौतियाँ हैं।