राजस्थान एक विशाल और शुष्क प्रदेश है जहाँ वर्षा की अनिश्चितता और कमी कृषि के लिए एक बड़ी चुनौती रही है। इस चुनौती का सामना करने और कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए राज्य में विभिन्न प्रकार की सिंचाई परियोजनाएँ विकसित की गई हैं। ये परियोजनाएँ न केवल फसलों को पानी उपलब्ध कराती हैं, बल्कि पेयजल, औद्योगिक उपयोग और विद्युत उत्पादन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। राजस्थान में सिंचाई के मुख्य स्रोत कुएँ, नलकूप, नहरें और तालाब हैं, जिनमें से नहरें और नलकूप सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं।
1. सिंचाई के प्रमुख साधन
राजस्थान में सिंचाई के मुख्य साधन निम्नलिखित हैं:
- नलकूप (Tube Wells): राजस्थान में सिंचाई का सबसे प्रमुख साधन नलकूप हैं, जिनसे सर्वाधिक सिंचाई होती है। मुख्यतः जयपुर, अलवर, दौसा, भरतपुर, धौलपुर जैसे पूर्वी मैदानी जिलों में इनका अधिक उपयोग होता है।
- कुएँ (Wells): नलकूपों के बाद कुएँ सिंचाई का दूसरा सबसे बड़ा साधन हैं। इनका उपयोग भी पूर्वी राजस्थान में अधिक है।
- नहरें (Canals): नहरें सिंचाई का एक महत्वपूर्ण साधन हैं, विशेषकर पश्चिमी और उत्तरी राजस्थान (श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जैसलमेर) में जहाँ वर्षा कम होती है।
- तालाब (Ponds): तालाब सिंचाई का सबसे प्राचीन साधन है और मुख्यतः दक्षिणी तथा दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान (भीलवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़) में अधिक प्रचलित हैं।
2. नहर सिंचाई परियोजनाएँ (Canal Irrigation Projects)
राजस्थान में अनेक बड़ी और मध्यम सिंचाई परियोजनाएँ हैं, जिनमें नहर प्रणालियाँ प्रमुख हैं।
2.1. इंदिरा गांधी नहर परियोजना (IGNP) – राजस्थान की जीवनरेखा
यह परियोजना राजस्थान की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण नहर परियोजना है, जिसे ‘राजस्थान की जीवनरेखा’ या ‘मरुगंगा’ कहा जाता है। इसका उद्देश्य पश्चिमी राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों को सिंचाई और पेयजल उपलब्ध कराना है।
- उद्गम: पंजाब में सतलुज और व्यास नदियों के संगम पर स्थित हरिके बैराज से।
- मुख्य उद्देश्य: पश्चिमी राजस्थान के गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, चूरू, नागौर, सीकर और झुंझुनू जैसे जिलों में सिंचाई और पेयजल आपूर्ति।
- नहर का नाम: पहले इसे ‘राजस्थान नहर’ कहा जाता था, लेकिन 2 नवंबर 1984 को इसका नाम बदलकर ‘इंदिरा गांधी नहर’ कर दिया गया।
- कुल लंबाई: लगभग 649 किलोमीटर (राजस्थान फीडर: 204 किमी, मुख्य नहर: 445 किमी)।
- शाखाएँ: इसकी 9 मुख्य शाखाएँ हैं जो दाहिनी ओर से निकलती हैं (बाईं ओर एक ही शाखा रावतसर शाखा है, जो हनुमानगढ़ में है)। प्रमुख शाखाएँ हैं: सूरतगढ़, अनूपगढ़, पुगल, दातोर, बिरसलपुर, चारणवाला, शहीद बीरबल, सागरमल गोपा, मोहनगढ़।
- लिफ्ट नहरें: पेयजल और सिंचाई के लिए 7 प्रमुख लिफ्ट नहरें बनाई गई हैं, जिनसे पानी ऊँचे क्षेत्रों तक पहुँचाया जाता है। ये नहरें पश्चिमी राजस्थान के कई जिलों के लिए जीवनरेखा हैं।
- कँवरसेन लिफ्ट नहर (लूणकरणसर लिफ्ट नहर): बीकानेर और श्री गंगानगर को लाभ। यह सबसे लंबी लिफ्ट नहर है।
- गजनेर लिफ्ट नहर (पन्नालाल बारूपाल लिफ्ट नहर): बीकानेर और नागौर को लाभ।
- फलौदी लिफ्ट नहर (गुरु जंभेश्वर लिफ्ट नहर): जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर को लाभ।
- बांगड़सर लिफ्ट नहर (वीर तेजाजी लिफ्ट नहर): बीकानेर को लाभ (सबसे छोटी लिफ्ट नहर)।
- कोलायत लिफ्ट नहर (डॉ. करणी सिंह लिफ्ट नहर): जोधपुर और बीकानेर को लाभ।
- पोकरण लिफ्ट नहर (जयनारायण व्यास लिफ्ट नहर): जैसलमेर और जोधपुर को लाभ।
- बड़ोपल लिफ्ट नहर (चौधरी कुंभाराम आर्य लिफ्ट नहर): हनुमानगढ़, चूरू, झुंझुनू और सीकर को लाभ। (सबसे अधिक जिलों को लाभ)।
- महत्व: इसने पश्चिमी राजस्थान के कृषि परिदृश्य को बदल दिया है, जिससे यहाँ गेहूं, कपास और सरसों जैसी फसलों का उत्पादन संभव हुआ है। इसने मरुस्थलीकरण को रोकने और हरियाली बढ़ाने में भी मदद की है।
2.2. चंबल घाटी परियोजना
यह राजस्थान और मध्य प्रदेश की एक संयुक्त परियोजना है (50:50 की हिस्सेदारी)। इसका उद्देश्य सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन और मृदा संरक्षण है।
- बाँध: इस परियोजना के तहत चंबल नदी पर 4 बाँध बनाए गए हैं:
- गांधी सागर बाँध: मध्य प्रदेश (मंदसौर) में।
- राणा प्रताप सागर बाँध: चित्तौड़गढ़ (रावतभाटा, राजस्थान) में।
- जवाहर सागर बाँध: कोटा (राजस्थान) में (पिकअप बाँध)।
- कोटा बैराज: कोटा (राजस्थान) में (सिंचाई हेतु नहरों के लिए)।
- लाभार्थी जिले: कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़, सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर।
2.3. माही-बजाज सागर परियोजना
यह राजस्थान और गुजरात की एक संयुक्त परियोजना है (45:55 की हिस्सेदारी)।
- बाँध: बांसवाड़ा जिले में माही नदी पर माही बजाज सागर बाँध और कागदी पिकअप बाँध।
- लाभार्थी जिले: बांसवाड़ा, डूंगरपुर। यह विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है।
2.4. बीसलपुर परियोजना
यह टोंक जिले में बनास नदी पर स्थित एक पेयजल परियोजना है, जो अब सिंचाई में भी सहायक है।
- बाँध: टोंक जिले में बीसलपुर बाँध।
- लाभार्थी जिले: जयपुर, अजमेर और टोंक को पेयजल उपलब्ध कराती है। भीलवाड़ा के कुछ क्षेत्रों को भी लाभ।
2.5. नर्मदा नहर परियोजना
यह राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की संयुक्त परियोजना है। यह परियोजना राजस्थान में पहली है जहाँ सिंचाई के लिए फव्वारा (स्प्रिंकलर) पद्धति अनिवार्य की गई है।
- नहर: सरदार सरोवर बाँध (गुजरात) से निकलने वाली नर्मदा नहर।
- राजस्थान में प्रवेश: जालोर जिले के सिलु गाँव से।
- लाभार्थी जिले: जालोर (सांचौर के निरस्त होने के बाद जालोर ही मुख्य है) और बाड़मेर। यह राजस्थान के दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है।
2.6. गंग नहर परियोजना
यह राजस्थान की सबसे पुरानी नहर परियोजना है।
- निर्माण: 1927 में महाराजा गंगासिंह द्वारा सतलुज नदी पर हुसैनीवाला (फिरोजपुर, पंजाब) से निर्मित।
- लाभार्थी जिले: श्री गंगानगर।
- महत्व: इसने श्री गंगानगर को ‘राजस्थान का अन्न का कटोरा’ बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
2.7. भाखड़ा-नांगल परियोजना
यह पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की संयुक्त परियोजना है।
- नदी: सतलुज नदी।
- बाँध: भाखड़ा बाँध (भारत का सबसे ऊँचा गुरुत्वीय बाँध) और नांगल बाँध।
- लाभार्थी जिले: हनुमानगढ़ और श्री गंगानगर।
2.8. व्यास परियोजना
यह पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की संयुक्त परियोजना है।
- नदी: व्यास नदी।
- उद्देश्य: रावी-व्यास नदियों के जल का उपयोग।
- लाभार्थी जिले: श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू, झुंझुनू, बीकानेर। यह इंदिरा गांधी नहर को जल उपलब्ध कराने में भी सहायक है।
2.9. जाखम परियोजना
- बाँध: प्रतापगढ़ जिले में जाखम नदी पर जाखम बाँध।
- विशेषता: यह राजस्थान का सबसे ऊँचा बाँध है (81 मीटर)।
- लाभार्थी जिले: प्रतापगढ़, उदयपुर, डूंगरपुर। विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों के लिए।
2.10. ईसरदा परियोजना
- बाँध: सवाई माधोपुर जिले में बनास नदी पर ईसरदा बाँध।
- लाभार्थी जिले: सवाई माधोपुर, टोंक और दौसा।
2.11. परवन वृहद सिंचाई परियोजना
- बाँध: बारां जिले में परवन नदी पर।
- लाभार्थी जिले: बारां, झालावाड़, कोटा।
2.12. गुड़गाँव नहर परियोजना (पश्चिमी यमुना नहर)
यह राजस्थान और हरियाणा की संयुक्त परियोजना है।
- नदी: यमुना नदी।
- लाभार्थी जिले: भरतपुर, डीग।
2.13. भरतपुर नहर परियोजना
- नदी: यमुना नदी।
- लाभार्थी जिले: भरतपुर।
3. प्रमुख बाँध एवं झीलें जो सिंचाई में सहायक हैं
कई बाँध और झीलें भी सिंचाई और पेयजल के स्रोत के रूप में काम करती हैं:
- जवाई बाँध: पाली जिले में जवाई नदी पर। ‘मारवाड़ का अमृत सरोवर’। पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा पेयजल बाँध।
- मेजा बाँध: भीलवाड़ा जिले में कोठारी नदी पर। भीलवाड़ा की जीवनरेखा।
- पांचना बाँध: करौली जिले में गंभीरी नदी पर। मिट्टी से निर्मित सबसे बड़ा बाँध। अमेरिका के सहयोग से निर्मित।
- मोतीझील: भरतपुर जिले में रूपारेल नदी पर। ‘भरतपुर की जीवनरेखा’।
- अनास बाँध: बांसवाड़ा जिले में अनास नदी पर।
- सोम-कमला-अंबा बाँध: डूंगरपुर जिले में सोम नदी पर।
- नारायण सागर बाँध: अजमेर जिले में खारी नदी पर।
- बंद बरेठा बाँध: भरतपुर में कुकुंद नदी पर।
- रामगढ़ बाँध: जयपुर जिले में बाणगंगा नदी पर।
- कायलाना झील: जोधपुर में (पेयजल)।
4. सिंचाई परियोजना के प्रकार
- वृहद सिंचाई परियोजनाएँ: 10,000 हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि को सिंचित करती हैं। (जैसे इंदिरा गांधी नहर, चंबल परियोजना)।
- मध्यम सिंचाई परियोजनाएँ: 2,000 से 10,000 हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित करती हैं। (जैसे मेजा, जवाई)।
- लघु सिंचाई परियोजनाएँ: 2,000 हेक्टेयर से कम कृषि भूमि को सिंचित करती हैं। (जैसे तालाब, कुएँ, नलकूप)।
5. सिंचाई की चुनौतियाँ और समस्याएँ
- जल की कमी: राजस्थान एक जल-अभाव वाला राज्य है।
- क्षारीयता और लवणता: नहरों से अत्यधिक सिंचाई के कारण कुछ क्षेत्रों में मिट्टी में क्षारीयता और लवणता (सेम की समस्या) बढ़ गई है, जिससे भूमि बंजर हो रही है।
- पानी का रिसाव (Seepage): नहरों से पानी का रिसाव भी एक समस्या है, जिससे पानी की बर्बादी होती है।
- अनुचित जल प्रबंधन: पानी के कुशल उपयोग की कमी।
- भूजल स्तर में गिरावट: नलकूपों के अत्यधिक उपयोग से भूजल स्तर लगातार गिर रहा है।
निष्कर्ष
राजस्थान की सिंचाई परियोजनाएँ राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इन्होंने शुष्क क्षेत्रों को हरा-भरा बनाने, खाद्य उत्पादन बढ़ाने और लाखों लोगों को पेयजल उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि, जल संरक्षण, कुशल जल प्रबंधन तकनीकों (जैसे बूंद-बूंद सिंचाई और फव्वारा सिंचाई) का उपयोग, और सेम जैसी समस्याओं का समाधान भविष्य की सिंचाई नीतियों के लिए प्रमुख चुनौतियाँ रहेंगी। इन परियोजनाओं का सतत और प्रभावी प्रबंधन ही राजस्थान के विकास की कुंजी है।