भारत की स्वतंत्रता के समय, वर्तमान राजस्थान राज्य 19 रियासतों, 3 ठिकानों (चीफशिप) और एक केंद्र शासित प्रदेश (अजमेर-मेरवाड़ा) में विभाजित था। इन सभी को मिलाकर आज के राजस्थान का स्वरूप बनाने की प्रक्रिया को “राजस्थान का एकीकरण” कहा जाता है। यह एक जटिल प्रक्रिया थी जो 7 चरणों में पूरी हुई और इसमें 8 वर्ष, 7 माह और 14 दिन का समय लगा। इस महत्वपूर्ण कार्य का श्रेय मुख्य रूप से भारत के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल और उनके रियासती विभाग के सचिव वी.पी. मेनन को दिया जाता है।
एकीकरण से पूर्व की स्थिति
आजादी के समय राजस्थान में निम्नलिखित इकाइयाँ थीं:
- 19 रियासतें: अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, उदयपुर (मेवाड़), कोटा, बूंदी, झालावाड़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, किशनगढ़, टोंक, शाहपुरा और सिरोही।
- 3 ठिकाने: कुशलगढ़, लावा और नीमराणा।
- 1 केंद्र शासित प्रदेश: अजमेर-मेरवाड़ा।
इन रियासतों के शासक स्वतंत्र भारत में शामिल होने या न होने का निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र थे, जिससे एकीकरण की प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण बन गई थी।
राजस्थान एकीकरण के सात चरण
राजस्थान का एकीकरण एक चरणबद्ध प्रक्रिया थी, जिसे नीचे विस्तार से बताया गया है:
प्रथम चरण: मत्स्य संघ
- गठन: 18 मार्च, 1948
- शामिल रियासतें: अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली (ABCD रियासतें) और नीमराणा ठिकाना।
- राजधानी: अलवर
- राजप्रमुख: महाराजा उदयभान सिंह (धौलपुर)
- प्रधानमंत्री: श्री शोभाराम कुमावत (अलवर)
- विशेष: के.एम. मुंशी के सुझाव पर इस संघ का नाम “मत्स्य संघ” रखा गया। इसका उद्घाटन केंद्रीय मंत्री एन.वी. गाडगिल ने किया था।
द्वितीय चरण: पूर्व राजस्थान संघ
- गठन: 25 मार्च, 1948
- शामिल रियासतें: कोटा, बूंदी, झालावाड़, टोंक, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, किशनगढ़, शाहपुरा और कुशलगढ़ ठिकाना।
- राजधानी: कोटा
- राजप्रमुख: महाराव भीम सिंह (कोटा)
- प्रधानमंत्री: श्री गोकुल लाल असावा (शाहपुरा)
- विशेष: इस चरण में दक्षिण और दक्षिण-पूर्व की 9 रियासतों को मिलाकर दूसरा संघ बनाया गया।
तृतीय चरण: संयुक्त राजस्थान
- गठन: 18 अप्रैल, 1948
- शामिल रियासतें: पूर्व राजस्थान संघ में उदयपुर (मेवाड़) रियासत का विलय।
- राजधानी: उदयपुर
- महाराजप्रमुख: महाराणा भूपाल सिंह (उदयपुर)
- राजप्रमुख: महाराव भीम सिंह (कोटा)
- प्रधानमंत्री: श्री माणिक्य लाल वर्मा (उदयपुर)
- विशेष: इस विलय के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वयं उपस्थित थे और उन्होंने इसका उद्घाटन किया।
चतुर्थ चरण: वृहद् राजस्थान
- गठन: 30 मार्च, 1949
- शामिल रियासतें: संयुक्त राजस्थान में जयपुर, जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर जैसी बड़ी रियासतों का विलय। लावा ठिकाना भी इसमें शामिल हुआ।
- राजधानी: जयपुर (श्री पी. सत्यनारायण राव समिति की सिफारिश पर)
- महाराजप्रमुख: महाराणा भूपाल सिंह (उदयपुर)
- राजप्रमुख: सवाई मान सिंह द्वितीय (जयपुर)
- प्रधानमंत्री: श्री हीरालाल शास्त्री (जयपुर)
- विशेष: यह एकीकरण का सबसे महत्वपूर्ण चरण था, और इसी दिन (30 मार्च) को “राजस्थान दिवस” के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्घाटन सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया था।
पंचम चरण: संयुक्त वृहद् राजस्थान
- गठन: 15 मई, 1949
- शामिल इकाइयाँ: वृहद् राजस्थान में मत्स्य संघ का विलय।
- राजधानी: जयपुर
- मुख्यमंत्री: श्री हीरालाल शास्त्री (प्रधानमंत्री का पद मुख्यमंत्री में बदल दिया गया)
- विशेष: यह विलय “शंकर राव देव समिति” की सिफारिशों के आधार पर किया गया था, क्योंकि मत्स्य संघ की कुछ रियासतें भाषा के आधार पर उत्तर प्रदेश में मिलना चाहती थीं, लेकिन समिति ने राजस्थान में विलय का सुझाव दिया।
षष्ठम् चरण: राजस्थान संघ
- गठन: 26 जनवरी, 1950 (भारत के संविधान के लागू होने पर)
- शामिल इकाई: संयुक्त वृहद् राजस्थान में सिरोही रियासत का विलय (आबू और देलवाड़ा को छोड़कर)।
- राजधानी: जयपुर
- मुख्यमंत्री: श्री हीरालाल शास्त्री
- विशेष: इस दिन राजपूताना का नाम बदलकर आधिकारिक रूप से “राजस्थान” कर दिया गया और यह ‘बी’ श्रेणी का राज्य बन गया। सिरोही के एक हिस्से को बंबई राज्य में मिलाने का स्थानीय जनता ने गोकुल भाई भट्ट के नेतृत्व में कड़ा विरोध किया।
सप्तम् चरण: वर्तमान स्वरूप
- गठन: 1 नवंबर, 1956
- शामिल इकाइयाँ: राज्य पुनर्गठन आयोग (फजल अली आयोग) की सिफारिशों पर राजस्थान में केंद्र शासित प्रदेश अजमेर-मेरवाड़ा, आबू-देलवाड़ा और मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले का सुनेल टप्पा क्षेत्र शामिल किया गया। राजस्थान का सिरोंज उप-जिला मध्य प्रदेश को दिया गया।
- राजधानी: जयपुर
- राज्यपाल: श्री गुरुमुख निहाल सिंह (राजप्रमुख का पद समाप्त कर राज्यपाल का पद सृजित किया गया)
- मुख्यमंत्री: श्री मोहनलाल सुखाड़िया
- विशेष: इस चरण के साथ ही राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया पूर्ण हुई और राज्य अपने वर्तमान भौगोलिक स्वरूप में आया।
एकीकरण की प्रमुख चुनौतियाँ और महत्वपूर्ण तथ्य
- जोधपुर का पाकिस्तान में विलय का प्रयास: जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह, मोहम्मद अली जिन्ना के बहकावे में आकर पाकिस्तान में शामिल होना चाहते थे। लेकिन सरदार पटेल के दबाव और वी.पी. मेनन की कूटनीति के कारण अंततः वे भारत में विलय के लिए सहमत हुए।
- प्रजामंडलों की भूमिका: विभिन्न रियासतों में चल रहे प्रजामंडल आंदोलनों ने जनता में राजनीतिक चेतना जगाई और शासकों पर भारत में विलय के लिए दबाव बनाया। माणिक्य लाल वर्मा, जयनारायण व्यास, गोकुल भाई भट्ट और हीरालाल शास्त्री जैसे नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- राजधानी का चयन: जयपुर और जोधपुर के बीच राजधानी को लेकर विवाद था, जिसे पी. सत्यनारायण राव समिति की सिफारिशों के आधार पर जयपुर को राजधानी बनाकर और अन्य शहरों को महत्वपूर्ण सरकारी विभाग आवंटित करके हल किया गया (जैसे जोधपुर को उच्च न्यायालय, बीकानेर को शिक्षा विभाग, उदयपुर को खनिज विभाग और कोटा को वन एवं सहकारी विभाग)।
- बांसवाड़ा के शासक का कथन: विलय पत्र पर हस्ताक्षर करते समय बांसवाड़ा के महारावल चंद्रवीर सिंह ने कहा था, “मैं अपने डेथ वारंट पर हस्ताक्षर कर रहा हूँ।” यह कथन रियासतों की स्वायत्तता के अंत का प्रतीक है।
इस प्रकार, विभिन्न बाधाओं और वार्ताओं के दौर से गुजरते हुए, राजस्थान की बिखरी हुई रियासतें एक होकर भारत संघ का एक अभिन्न अंग बनीं।